Wednesday, October 28, 2009

०१ नवम्बर मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस पर आलेख श्री प्रह्लाद सिंह पटेल पूर्व संसद सदस्य





























Sunday, October 4, 2009

किसान भी हैं जिम्मेदार -रामवीर श्रेष्ठ

भारत में किसानों की बदहाली की जब भी चर्चा होती है तो प्राय: सबकी उंगली सरकारी नीतियों के खिलाफ ही उठती है, जो ठीक भी है। किंतु प्रश्न उठता है कि क्या किसान अपनी खराब हालत के लिए खुद जिम्मेदार नहीं हैं? नए दौर में किसानों की आदतें बदली हैं और उनकी प्राथमिकताएं भी। किसान अब अपनी मेहनत और प्रकृति प्रदत्ता संसाधनों की बजाय सरकारी अनुदान और उद्योगों द्वारा मुहैया कराए गए साजो सामान पर निर्भर हो गया है।
अपनी अच्छी-भली पारंपरिक कृषि को छोड़ वह व्यावसायिक कृषि की चमक-दमक के पीछे भागने लगा। लेकिन, हुआ यह कि उसे न माया मिली न राम।
आइए गौर करते हैं उन बातों पर जो किसान की लापरवाही के कारण उसके लिए मुश्किल बनी हुई हैं। हम अच्छी तरह जानते हैं कि देश की जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा बारानी व्यवस्था यानि बारिश के पानी पर आधारित है। बारिश नहीं हुई तो पूरी खेती चौपट हो जाती है। किसान मजबूर खड़ा रह जाता है। नहरों से सिंचाई की समस्या को दूर करने की कोशिश की गई। लेकिन, इससे समस्या का अंतिम हल ढूंढ पाना असंभव है। टयूबवेलों की भी अपनी सीमाएं हैं। उनका खर्च वहन कर पाना देश के अधिकतर किसानों के लिए कठिन है। सिंचाई की इन समस्याओं को समझते हुए भी किसान सदियों से काम आ रहे भूजल की हिफाजत करना भूल गए।
वे जमीनी जलस्तर को काबू में रखने की जिम्मेवारी से बचते रहे। किसानों ने इस बात का भी ध्यान नहीं रखा कि उनके इलाके में पानी की उपलब्धता को देखते हुए किन फसलों की खेती करनी चाहिए और किनकी नहीं। भविष्य की कठिनाइयों पर विचार किए बिना उन्होंने पानी की भारी खपत वाली फसलों की खेती करनी शुरू कर दी। ऐसा नहीं है कि किसानों को इसके खतरे नहीं मालूम थे। उन्हें यह अच्छी तरह मालूम था कि आज नहीं तो कल पानी की समस्या से दो-चार तो होना ही पड़ेगा।
किसानों की दूसरी सबसे बड़ी समस्या खाद को लेकर है। हरित क्रांति के बाद तो किसान जैसे देशी खाद का उपयोग करना ही भूल गए। जो लोग थोड़ा बहुत उपयोग करते हैं, वे बिना किसी प्रोसेसिंग के ज्यों का त्यों कच्चे गोबर का ही उपयोग करते हैं। इससे खेत में एक दूसरी बीमारी आती है और वो है ‘दीमक’। खेती को बाजार का हिस्सा बनाने वाली दवाई कंपनियों ने किसान के दिमाग में यह बात अच्छी तरह बिठा दी है कि रासायनिक डाई, यूरिया या रासायनिक कीटनाशकों के बगैर आधुनिक खेती संभव ही नहीं है। ये ऐसा मोहपाश है जिससे भारतीय किसान उबर नहीं पाया है।
दरअसल, कुछ पहाड़ी या वन क्षेत्रों को छोड़ दें तो खाद के मामले में किसान पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो गए हैं। आगे जैसे-जैसे खेती की उर्वरा शक्ति घटी है, वैसे-वैसे उसमें रासायनिक खाद की मात्रा बढ़नी शुरू हुई है। कम खाद डालने पर अब खेती उचित परिणाम नहीं दे पा रही है।
देश में कृषि के आधुनिकीकरण के नाम पर जो नई तकनीके थोपी गईं उन्होंने किसान को श्रम से दूर कर दिया। ट्रैक्टर ने बैल को अनुपयोगी बना दिया है। किसानों को गोबर में हाथ गंदा करने से अच्छा लगा कि खेतों में यूरिया डाली जाए। दरअसल, शुरुआत में इसकी वजह कम मात्रा में ज्यादा कारगर सिद्ध होना था। शुरू में तो नहीं लेकिन आज किसान रासायनिक खाद के दुष्परिणाम को समझने लगे हैं। लेकिन, फिर भी वे अपनी आदतें बदलने में तेजी नहीं दिखा रहे हैं। जिन किसानों ने इस दिशा में तेजी दिखाई, उनकी हालत औरों से बेहतर है।
आज खेती श्रम से दूर हो गई है। यह आरामतलबी किसानों के लिए अच्छी नहीं है। उन्हें अब समझ लेना चाहिए कि आराम की यह चाहत उनके लिए बहुत महंगी पड़ेगी। ट्रैक्टर जैसे कृषि यंत्र बड़े-बड़े फार्मों के लिए तो ठीक हैं मगर छोटे किसानों को तो अंतत: बैलों का ही सहारा लेना पड़ेगा। कई किसानों को यह बात समझ में आ गई है और वे इसे अपनाने लगे हैं। जिलौठी के तिलक सिंह अपनी 1 हेक्टेयर जमीन की जुताई में बैलों का उपयोग करते हैं और इस प्रकार साल भर में 8 से 10 हजार रूपए बचा रहे हैं। यही बात खाद के मामले में भी लागू होती है। भूनी गांव के किसान अनिल त्यागी का अनुभव है कि केवल केंचुआ खाद देने पर खेतों में पानी की मांग कम हो गई।
आज समय आ गया है जब किसान अपनी जिम्मेदारी समझें। उन्हें अपनी मेहनत और अपने प्राकृतिक संसाधनों पर यकीन करते हुए एक बार फिर खेतों में जाना पड़ेगा। अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो अपनी बदहाली के लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे, सरकार या कोई और नहीं।

अपनी हैसियत ज़ाहिर न करें... - प्रभाष जोशी



भारत के सबसे सिद्व और प्रसिद्व संपादक और उससे भी आगे शास्त्रीय संगीत से ले कर क्रिकेट तक हुनर जानने वाले प्रभाष जोशी के पीछे आज कल कुछ लफंगों की जमात पड़ गई है। खास तौर पर इंटरनेट पर जहां प्रभाष जी जाते नहीं, और नेट को समाज मानने से भी इंकार करते हैं, कई अज्ञात कुलशील वेबसाइटें और ब्लॉग भरे पड़े हैं जो प्रभाष जी को ब्राह्मणवादी, सामंती और सती प्रथा का समर्थक बता रहे हैं। कहानी रविवार डॉट कॉम में हमारे मित्र आलोक प्रकाश पुतुल द्वारा प्रभाष जी के इंटरव्यू से शुरू हुई थी। वेबसाइट के आठ पन्नों में यह इंटरव्यू छपा है और इसके कुछ हिस्सों को ले कर भाई लोग प्रभाष जी को निपटाने की कोशिश कर रहे हैं। जिसे इंदिरा गांधी नहीं निपटा पाईं, जिसे राजीव गांधी नहीं निपटा पाए, जिस लाल कृष्ण आडवाणी नहीं निपटा पाए उसे निपटाने में लगे हैं भाई लोग और जैसे अमिताभ बच्चन का इंटरव्यू दिखाने से टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ जाती हैं वैसे ही ये ब्लॉग प्रभाष जी की वजह से लोकप्रिय और हिट हो रहे हैं।मगर लोकप्रिय की बात करें तो यह लोग कौन सा हैं? प्रभाष जी पर इल्जाम है कि वे जातिवादी हैं और ब्राह्मणों को हमेशा उन्होंने आगे बढ़ाया। दूर नहीं जाना है। मेरा उदाहरण लीजिए। मैं ब्राह्मण नहीं हूं और अपने कुलीन राजपूत होने पर मुझे दर्प नहीं तो शर्म भी नहीं है। पंडित प्रभाष जोशी ने मुझ जैसे गांव के लड़के को छह साल में सात प्रमोशन दिए और जब वाछावत वेतन आयोग आया था तो इन्हीं पदोन्नतियों की वजह से देश में सबसे ज्यादा एरियर पाने वाला पत्रकार मैं था जिससे मैंने कार खरीदी थी। प्रभाष जी ने जनसत्ता के दिल्ली संस्करण का संपादक बनवारी को बनाया जो ब्राह्मण नहीं हैं लेकिन ज्ञान और ध्यान में कई ब्राह्मणों से भारी पड़ेंगे। प्रभाष जी ने सुशील कुमार सिंह को चीफ रिपोर्टर बनाया। सुशील ब्राह्मण नहीं है। प्रभाष जी ने कुमार आनंद को चीफ रिपोर्टर बनाया, वे भी ब्राह्मण नहीं है। प्रभाष जी ने अगर मुझे नौकरी से निकाला तो पंडित हरिशंकर ब्यास को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया।सिलिकॉन वैली में अगर ब्राह्मण छाए हुए हैं तो यह तथ्य है और किसी तथ्य को तर्क में इस्तेमाल करने में संविधान में कोई प्रतिबंध नहीं लगा हुआ है। प्रभाष जी तो इसी आनुवांशिक परंपरा के हिसाब से मुसलमानों को क्रिकेट में सबसे कौशलवादी कॉम मानते हैं और अगर कहते हैं कि इनको हुनर आता था और चूंकि हिंदू धर्म में इन्हें सम्मान नहीं मिला इसलिए उनके पुरखे मुसलमान बन गए थे। अगर जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, नरसिंह राव और राजीव गांधी ब्राह्मण हैं तो इसमें प्रभाष जी का क्या कसूर हैं? इतिहास बदलना उनके वश का नहीं है। प्रभाष जी ने इंटरव्यू में कहा है कि सुनील गावस्कर ब्राह्मण और सचिन तेंदूलकर ब्राह्मण लेकिन इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि अजहरुद्दीन और मोहम्मद कैफ भारतीय क्रिकेट के गौरव रहे हैं।एक और बात उछाली जा रही है और वह है सती होने की बात। एक जमाने में देवराला सती कांड हुआ था तो बनवारी जी ने शास्त्रों का हवाला दे कर एक संपादकीय लिखा था जिसमें कहा गया था कि सती होना भारतीय परंपरा का हिस्सा है। वे तथ्य बता रहे थे। सती होने की वकालत नहीं कर रहे थे। इस पर बवाल मचना था सो मचा और प्रभाष जी ने हालांकि वह संपादकीय नहीं लिखा था, मगर टीम के नायक होने के नाते उसकी जिम्मेदारी स्वीकार की। रविवार के इंटरव्यू में प्रभाष जी कहते हैं कि सती अपनी परंपरा में सत्य से जुड़ी हुई चीज है। मेरा सत्य और मेरा निजत्व जो है उसका पालन करना ही सती होना है। उन्होंने कहा है कि सीता और सावित्रि ने अपने पति का साथ दिया इसीलिए सबसे बड़ी सती हिंदू समाज में वे ही मानी जाती है।अरे भाई इंटरव्यू पढ़िए तो। फालतू में प्रभाष जी को जसवंत सिंह बनाने पर तूले हुए हैं। प्रभाष जी अगर ये कहते हैं कि भारत में अगर आदिवासियों का राज होता तो महुआ शेैंपियन की तरह महान शराब मानी जाती लेकिन हम तो आदिवासियों को हिकारत की नजर से देखते है इसलिए महुआ को भी हिकारत से देखते हैे। मनमोहन सिंह को खेती के पतन और उद्योग के उत्थान के लिए प्रभाष जी ने आंकड़े दे कर समझाया है और अंबानी और कलावती की तुलना की है, हे अनपढ़ मित्रों, आपकी समझ में ये नहीं आता।आपको पता था क्या कि शक संभवत उन शक हमलावरों ने चलाया था जिन्हें विक्रमादित्य ने हराया था लेकिन शक संभवत मौजूद है और विक्रमी संभवत भी मौजूद है। यह प्रभाष जी ने बताया है। प्रभाष जी सारी विचारधाराओं को सोच समझ कर धारण करते हैं और इसीलिए संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को सांप्रदायिक राष्ट्रवाद कहते है। इसके बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी से ले कर भैरो सिंह शेखावत तक से उनका उठना बैठना रहा है। विनाबा के भूदान आंदोलन में वे पैदल घूमे, जय प्रकाश नारायण के साथ आंदोलन में खड़े रहे और अड़े रहे। चंबल के डाकुओं के दो बार आत्म समर्पण में सूत्रधार बने और यह सिर्फ प्रभाष जी कर सकते हैं कि रामनाथ गोयनका ने दूसरे संपादकों के बराबर करने के लिए उनका वेतन बढ़ाया तो उन्होंने विरोध का पत्र लिख दिया। उन्होंने लिखा था कि मेरा काम जितने में चल जाता है मुझे उतना ही पैसा चाहिए। ये ब्लॉगिए और नेट पर बैठा अनपढ़ों का लालची गिरोह प्रभाष जी को कैसे समझेगा?ये वे लोग हैं जो लगभग बेरोजगार हैं और ब्लॉग और नेट पर अपनी कुंठा की सार्वजनिक अभिव्यक्ति करते रहते हैं। नाम लेने का फायदा नहीं हैं क्योंकि अपने नेट के समाज में निरक्षरों और अर्ध साक्षरों की संख्या बहुत है। मैं बहुत विनम्र हो कर कह रहा हूं कि आप प्रभाष जी की पूजा मत करिए। मैं करूंगा क्योंकि वे मेरे गुरु हैं। आप प्रभाष जी से असहमत होने के लिए आजाद हैं और मैं भी कई बार असहमत हुआ हूं। जिस समय हमारा एक्सप्रेस समूह विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए सारे घोड़े खोल चुका था और प्रधानमंत्री वे बन भी गए थे तो ठीक पंद्रह अगस्त को जिस दिन उन्होंने लाल किले से देश को संबोधित करना था, जनसत्ता के संपादकीय पन्ने पर मैंने उन्हें जोकर लिखा था और वह लेख छपा था। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लगभग विलखते हुए फोन किया था तो प्रभाष जी ने उन्में मेरा नंबर दे दिया था कि आलोक से बात करो।यह कलेजा प्रभाष जी जैसे संपादक का ही हो सकता है कि एक बार रामनाथ गोयनका ने सीधे मुझे किसी खबर पर सफाई देने के लिए संदेश भेज दिया तो जवाब प्रभाष जी ने दिया और जवाब यह था कि जब तक मैं संपादक हूं तब तक अपने साथियों से जवाब लेना होगा तो मैं लूंगा। यह आर एन जी का बड़प्पन था कि अगली बार उन्होंने संदेश को भेजा मगर प्रभाष जी के जरिए भेजा कि आलोक तोमर को बंबई भेज दो, बात करनी है।आपने पंद्रह सोलह हजार का कंप्यूटर खरीद लिया, आपको हिंदी टाइपिंग आती है, आपने पांच सात हजार रुपए खर्च कर के एक वेबसाइट भी बना ली मगर इससे आपको यह हक नहीं मिल जाता कि भारतीय पत्रकारिता के सबसे बड़े जीवित गौरव प्रभाष जी पर सवाल उठाए और इतनी पतित भाषा में उठाए। क्योंकि अगर गालियों की भाषा मैंने या मेरे जैसे प्रभाष जी के प्रशंसकों ने लिखनी शुरू कर दी तो भाई साहब आपकी बोलती बंद हो जाएगी और आपका कंप्यूटर जाम हो जाएगा। भाईयो बात करो मगर औकात में रह कर बात करो। बात करने के लिए जरूरी मुद्दे बहुत हैं।

Thursday, October 1, 2009

THE BEARD OF SHRI BABA SHRI JI Recorded in guinees world record

श्री निर्विकार पथ के प्रणेता व परिक्रमा वासी परम पूज्य श्री श्री बाबा श्री जी की दाढ़ी से निकली १.८४ मीटर या ६ फ़ुट लम्बी lat को ginees वर्ल्ड record में darj kiya hai.







THE BEARD OF SHRI BABA SHRI JI
measures 1.84 meter or 6 feet

from the end of his

chin to the tip of the beard as of 23 november 2008